किडनी देने के बाद भी स्वस्थ्य जीवन जिया जा सकता है – अनिल श्रीवत्स

मसूरी। किडनी डोनेट करने को लेकर भारत सहित विश्व में संदेश देने वाले अनिल श्रीवत्स ड्राइव इंडिया फोर के तहत मसूरी पहुंचे हैं। उन्होंने कहा कि किडनी देने के बाद भी मनुष्य स्वस्थ्य रह सकता है इस डर को निकालने व लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए वह भारत सहित पूरे विश्व में घूमते हैं व प्रचार करते हैं।
मसूरी पहुंचे अनिल श्रीवत्स ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अंग दान करने से शरीर को कोई नुकसान नहीं होता। उन्होंने बताया कि
आठ साल पहले उन्होंने अपने भाई को अपनी किडनी दी थी हालांकि पहले मैं भी डर गया था लेकिन भाई के प्यार ने मुझे प्रोत्साहित किया व डर के आगे जीत है, प्यार के आगे जीत है को चरितार्थ करते हुए अपनी किडनी भाई को दे दी। उन्होनें उसके बाद सोचा कि क्यों न इस बात को आगे बढाया जाय कि किडनी देने के बाद भी स्वस्थ्य जीवन जिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर लोगों को किडनी देने के लिए प्रोत्साहित किया जाय तो शायद उतने लोग कम हो जायेगे जो डायलिसस पर जिंदा है। डायलिसस पर रहना जीना नहीं है वह केवल जिंदा रहना है। उन्होंने कहा कि इसी संदेश को दुनिया तक पहुचाने के लिए उन्होंने लोगों को जागरूक करने का निर्णय लिया व लक्ष्य रखा कि वह कम से कम दस लाख लोगों को अपने संबोधन के माध्यम से अपनी कहानी सुनायेगे व उन्हें प्रोत्साहित करेंगे। अगर दस प्रतिशत ने भी इस संदेश को अमल में ला लिया तो एक लाख लोगों की जान बच जायेगी। वहीं कहा कि वह मसूरी में भी लोगों को जागृत करेंगे। उन्होंने बताया कि सात साल पहले इसी वाहन से बाइ रोड भारत से इंग्लैड तक गये अभी तक 44 देशों में जा चुके हैं और यह ड्राइव इंडिया फोर है इससे पहले तीन बार भारत का पूरा चक्कर लगा चुके हैं। इस यात्रा में 24 फरवरी को बैगलौर से निकले व विभिन्न शहरों से होते हुए व लोगों को जागृत करते हुए गुलमर्ग गये व वहां से मसूरी पहुंचे हैं। तथा यहां से देहरादून, ऋषिकेश, दिल्ली, जयपुर, गुजरात, पुणे होते हुए 1 अप्रैल को यात्रा समाप्त की जायेगी व इन सभी स्थानों पर संबोधन किया जायेगा। जिसे रोटरी क्लब आयोजित कर रहा है वह स्वयं भी रोटरी से जुड़े हैं। इस यात्रा मंे मेरा मकसद है कि करीब पांच हजार लोगों तक यह संदेश जाये व अभी तक साढे तीन हजार लोगों तक यह संदेश जा चुका है। उन्होंने यह भी बताया कि विश्व स्तर एक खेल प्रतियोगिता ओलंपिक की तर्ज पर आयोजित की जाती है जैसे पैरा ओलंपिक विकलांगों के लिए होती है वैसे ही किडनी देने व लेने वालों के लिए भी खेल प्रतियोगिता होती है जिसे वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम कहते है जिसे ओलंपिक एसोसिएशन करवाता है। जिसमें मैं भारत का प्रतिनिधित्व करता हूं व जिस भाई को किडनी दी उन्होंने भी प्रतिभाग किया व दोनांे भाइयों ने  स्वर्ण पदक हासिल किया है। यह प्रतियोगिता 2019 में इंग्लैड में हुई थी व आगामी प्रतियोगिता 2023 में आस्टेªलिया के पर्थ मे ंहोनी है। इस प्रतियोगिता मे ंभाग लेने में इसी साल जून में अलास्का से अर्जेंटीना इसी वाहन से जाउंगा और वहां से वाहन सहित पानी के जहाज से सिडनी पहुंचुगां व वहां से बाई रोड पर्थ जाउंगा। व निश्चित की पदक जीतूंगा। उन्होंने बताया कि वह मसूरी से होली मनाने देहरादून अपनी ससुराल जायेंगे व वहां से ऋषिकेश गंगा आरती में बुलाया गया है वहां जाउंगा व वहां संबोधन भी है। उन्होंने कहा कि मेरी पत्नी भी अधिकतर समय मेरे साथ यात्रा में रहती है और किडनी देने के मामले में भी सहयोग किया। इस यात्रा में भी श्रीनगर से मेरे साथ हैं।

इस अवसर पर अनिल श्रीवत्स की पत्नी दीपाली श्रीवत्स ने बताया कि पहले वह भी डर गई थी कि अगर पति ने किडनी दे दी व कुछ हो गया तो क्या होगा। लेकिन मेरे बच्चों ने कहा कि अगर भाई को जरूरत पड़ेगी तो आप मना करेंगी तो मैने कहा नहीं और बच्चों के इस प्रोत्साहित करने वाली बाद ने उनका डर भगाया व पति को किडनी देने को कहा। उन्होंने कहा कि समाज में यह डर लोगों में रहता है कि अगर एक किडनी दे दी तो परेशानी होगी लेकिन ऐसा नहीं है एक किडनी से भी स्वस्थ्य जीवन जिया जा सकता है। उन्होंने बताया कि तब से मै अपने पति के साथ भ्रमण पर रहती हूं। उन्होंने बताया कि वह स्वस्थ्य व साहसिक जीवन जी रहे हैं मैराथन दौड़ते हैं पहाडों पर जाते हैं। उन्होंने कहा कि किडनी को लेकर प्रचार प्रसार की कमी होने से बहुत से लोग अपना जीवन गंवा देते हैं ऐसा नहीं होना चाहिए अगर परिवार में किसी को जरूरत है तो किडनी देने में डरना नहीं चाहिए वह एक किडनी से भी स्वस्थ्य जीवन जी सकता है।

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