मुंगरसन्ति के प्रसिद्ध डांडा देवराणा मेले पर युवा कवि प्रविन राणा की रंवाल्टी कविता।

अरविन्द थपलियाल

उत्तरकाशी : अपनी बोली भाषा के प्रति जागरूकता और निष्ठा की झलक शिक्षित युवाओं में बखुवी देखने को मिल रही है, हम यह कहें कि हमारी शिक्षा जमीनी स्तर पर लौटने के कगार पर है,प्रखडं नौगांव थोलिंका निवासी b.scके छात्र प्रविन राणा ने डांडा की जातिर पर एक ऐसी ही कविता लिखने का प्रयास किया जिसकी सोशल मीडिया पर खूब सरहाना हो रही है अब पढें प्रविन राणा की यह कविता।

डाडा की जातिरा (रवाई– पट्टी मुगरसंती)
आई गी रे दगड़ियाओ डाडा की जातिरा हां हां डाडा की जातिरा ,
अब जालू मै डाडा की जातिरा, तख ली जालू मैं हरियाई, केदार पातिरा,
देवा रूद्रेश्वर के हरयाई चढ़ाई और दर्शन करिके, तब खेलो मै डाडा की जातिरा,
भाई–बंधु, दीदी–भुलियो, रयाणी–दयाणी, तुम सब भी आयान डाडा की जातिरा,
तभी त रोनक आली और, भली जुड़ली डाडा की जातिरा ।। लेखक–प्रवीन सिंह राणा (PK@)
न रई रे दगड़िया अब सू पहेलकू जमानू,
आजकालू क मनखयू कू ब्ल देखा देखी कू जमानू,
हर कोई मनखी हर कोई लगी ब्ल फैशन मा अजमानू ,
मेला त ब्ल ऐनी धरोहर, जेन अपणी संस्कृति बचाणु ।।
एक बात त सच बताणु– मेला मा रोनक तब आई जाणु,
जब गीत लगद ब्ल, बाजी जालों बाणु ब्ल बाज़ी जालो बाणु …..।।
डाडा की जातिरा मा ब्ल, कई खत–मुलुकू क आंद ब्ल लोग,
देवा रूद्रेश्वर महाराज क दर्शन करी के , तखी चढाद सी कई भोग,
देवा कु आश्रीष पाई के, कट जांद ब्ल त्योंक जीवन क रोग ।।
रयाणी–दयाणी एक– दुसर से मिलकर, बाता करीकर लगांदी –रहंदी ब्ल त्मासु,
सभी खत–मुलुकू क लोग , लगांद ब्ल तखी झुमेलू व रासु,
तब बजद ब्ल तखी, ढोल, नगाड़ा, रणशींगा, ऐनी होंदी ब्ल संस्कृति की झलक,
देखदी रहंद ब्ल लोग, पर कुछ क्षण झपक नी सकदी लोगू की पलक ।।
डाडा की जातिरा क बारा मा जति बताणु, तती पडलू कम
संस्कृति की धरोहर, मेल–मिलाप की ब्ल ई जतार,
एक बार येखी जरूर आयान ब्ल तुम ।। जातर भी होंदी रहंदी , झूमेलू भी लगदू रहन्दू,
जवान छोरो की भी होंदी कुछ अलग–अलग काया,
खोज्द–खोज्द रहन्द सी तखि भीड़ मा,
खोजी लेन्द सी अपणि माया ।।

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