तिमुंडिया मेले के आयोजन से होती है बद्रीनाथ धाम की यात्रा निर्विघ्न।

रिपोर्ट – विनय उनियाल

चमोली : त्रिमुन्डिया मेले के साथ बद्रीनाथ धाम की यात्रा का आगाज हो गया है। पुरातन परंपरा के अनुसार इस साल भी जोशीमठ स्थित नरसिंह मंदिर प्रांगण में शनिवार को तिमुंडिया देव मेले का आयोजन हुआ। ऐसी परंपरा है कि इस मेले का आयोजन बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने से सप्ताह भर पहले पड़ने वाले शनिवार को होता है। इस मेले के आयोजन का उद्देश्य बद्रीनाथ धाम की यात्रा का सुखद संचालन है। ऐसी मान्‍यता है कि तिमुंडिया मेले का आयोजन करने से बद्रीनाथ धाम की यात्रा निर्विघ्न संपन्न होती है। शनिवार दोपहर बाद नरसिंह मंदिर प्रांगण ढोल दमाऊ की ताल से गुंजायमान हुआ जिसके बाद तिमुंडिया वीर देवता ने अपने पश्व(अवतारीपुरुष) पर अवतरित होकर अपना भोग स्वीकार करता है। इस दौरान वीर देवता ने लगभग क्विंटल भर चावल गुड़ व पांच घड़े पानी और एक पूरा कच्‍चे बकरे का भोग स्‍वीकार कर लिया। इस दौरान महिलाओं ने पारंपरिक झुमेलो और चाचड़ी नृत्य किया। इस चमत्कारिक दृश्य के साक्षी हजारों की तादाद में नरसिंह मंदिर प्रांगण में मौजूद श्रद्धालु बने।

कौन है तिमुंडिया वीर देवता
पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार तिमुंडिया वीर देवता जनपद चमोली के लांजी पोखनी के निकट के गांव हियूणा में राक्षस स्वरूप में रहते थे। वे नित्य एक ना एक मनुष्य की बलि लेकर गांव में भय फैलाता था। मान्यता है कि एक दिन जोशीमठ क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी मां दुर्गा अपने क्षेत्र भ्रमण पर निकली तो लोगों से उनकी भेंट हुई। मां दुर्गा से ग्रामीणों ने अपना दुख साझा किया और इस राक्षस का कुछ उपाय करने को कहा उसके बाद मां दुर्गा ने इस राक्षस को राक्षसी योनि से मुक्त कर देवयोनि प्रदान की और अपने साथ अपने क्षेत्र जोशीमठ में इस आश्वासन पर ले आई की मां दुर्गा इस राक्षस को प्रतिवर्ष एक बकरे की बलि देगी और उसके बदले में यह राक्षस मां और मां के क्षेत्र की रक्षा करेगा। उस पौराणिक समय से तिमुंडिया को वीर देवता के नाम से पूजा जाने लगा और साल में एक बकरे की बलि आज भी दी जाती है।
आज भी दुर्गा जी ही कर पाती है काबू
पौराणिक समय से लेकर आज तक नरसिंह मंदिर में जब जब इस देव मेले का आयोजन होता है तब अवतारी पुरुष पर तिमुंडिया वीर का आवेश आने पर मात्र मां दुर्गा उसे काबू करने में सक्षम हैं। जब तिमुंडिया वीर के अवतारी पुरुष पर वीर का अवतरण होता है उससे कुछ मिनट पहले अवतारी पुरुष पर मां दुर्गा भी अवतरित होती हैं और इस वीर के बाल पकड़कर इसे काबू करती हैं। पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार वीर की प्रवृत्ति आज भी अत्यंत डरावनी और तेजवान है और इस वीर को काबू करने में मात्र मां दुर्गा ही सक्षम है।

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