तिलाड़ी गोलीकांड के अमर शहीदों को याद कर मनाया गया तिलाड़ी शहीद दिवस।


रिपोर्ट- प्रदीप सिंह असवाल
उत्तरकाशी : वर्ष 1930 को जब महाराजा नरेंद्र शाह अपने यूरोपीय दौरे में थे। तो प्रशासन की देखभाल की जिम्मेदारी के लिए एक परिषद् गठित की गई थी। जिसमें दीवान चक्रधर जुयाल को अध्यक्ष, राजा के चाचा कुंवर विचित्र शाह को उपाध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त वजीर हरीकृष्ण रतूड़ी को सदस्य चुना गया था। उस समय नये वन अधिनियम लागू होने से रवांई जौनपुर के लोगों में काफी असंतोष फैल रखा था। रवांई जौनपुर के समस्त ग्रामीणों एवं जनता द्वारा उनके चरान-चुगान, घास, लकड़ी, जमीन जंगल आदि पर लगे प्रतिबंध के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए आजाद पंचायत बनाने का निर्णय लिया गया तथा चांदा डोखरी, तिलाड़ी एवं थापला नामक स्थान पर बैठक करने लगे। जिसके चलते डी0एफ0ओ0 पदमदत्त रतूड़ी ने वन अपराध के झूठे आरोप में दरबार से वारंट लाकर 20 मई 1930 को आंदोलन के प्रमुख नेता दयाराम,रुद्र सिंह रामप्रसाद और जमन सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें टिहरी जेल भेजने के लिए ले जाने लगे तभी डंडाल गांव के पास आंदोलनकारियों ने अपने साथियों को छुड़ाने का प्रयास किया गया। तो डी0 एफ0ओ0 पदमदत्त रतूड़ी ने पिस्तौल निकालकर फायर कर दिया। जिसके चलते आंदोलनकारी झूनसिंह व अजीत सिंह घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई तथा कुछ अन्य साथी गोलियों से जख्मी हो गए। रवांई में राजदरबार के विरुद्ध घटित हुए विदोह के बारे में जब दीवान चक्रधर रतूड़ी को पता चला, तो उन्होंने संयुक्त प्रांत के गवर्नर से विद्रोह का दमन करने हेतु बल प्रयोग करने की आज्ञा ले ली। इधर 29 मई की रात्रि को तिलाड़ी नामक तोक में आगे की रणनीति बनाने के लिए भारी संख्या में आंदोलनकारी एवं ग्रामीण एकत्रित हो रखे थे। 30 मई 1930 को जब तिलाड़ी में यमुना नदी के किनारे हजारों लोग बैठक कर रहे थे तो दीवान चक्रधर रतूड़ी द्वारा लाई गई सेना ने निहत्थे ग्रामीण आंदोलनकारियों को तीन और से घेरकर गोलियां बरसानी शुरू कर दी, बगल में यमुना नदी का बहाव भी तेज था। देखते ही देखते तिलाड़ी तोक मैदान खून से लथपथ होकर लाशों और घायलों से भर गया। कुछ लोग मजबूरन बस जान बचाने के लिए उफनती यमुना नदी में कूद गए कुछ पेड़ों पर चढ़ गए तो उन्हें वही गोलीयों से भून दिया गया। इस बर्बरता पूर्ण गोलीकांड में सैकड़ों लोग मारे गए अनेकों घायल हुए तथा अनेकों को गिरफ्तार कर लिया गया हजारों लोगों के ऊपर मुकदमे चले उन्हें जेल में डाल दिया गया, जुर्माना लगाया गया, जुर्माना न देने पर कुर्कियां की गई, कैदियों को पैरवी हेतु वकील रखने की भी इजाजत नहीं दी गई। राजशाही द्वारा लागू किए गये इस शोषण अन्यायपूर्ण वन कानून के कारण अपनी जान गवाने वाले दिवस को प्रतिवर्ष तिलाड़ी शहीद दिवस के रुप मे 30 मई को मनाया जाता है। जिसमें नगर पालिका, प्रशासनिक अधिकारी, जन प्रतिनिधि, समाजसेवी एवं नगर , ग्रामीण क्षेत्र के लोग भारी मात्रा में उपस्थित रहते हैं।