जब एक कुंतल चावल व एक कच्चा बकरा खा जाता है त्रिमुण्डिया वीर, बद्रीनाथ के कपाट खुलने की पहली प्रक्रिया।

रिपोर्ट – विनय उनियाल

चमोली/देहरादून : पौराणिक और चमत्कारिक तिमुंडिया मेले के साथ बद्रीनाथ धाम की यात्रा का आगाज हो गया है। पिछले कई दशकों से चली आ रही परंपरा के अनुसार इस वर्ष भी जोशीमठ स्थित नरसिंह मंदिर प्रांगण (मठांगण) में शनिवार को तिमुंडिया देव मेले का आयोजन हुआ। परंपरा अनुसार इस मेले का आयोजन बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने से सप्ताह भर पहले पडने वाले शनिवार को होता है। पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल के अनुसार इस मेले के आयोजन का उद्देश्य बद्रीनाथ धाम की यात्रा का सुखद संचालन है। तिमुंडिया मेले का आयोजन करने से बद्रीनाथ धाम की यात्रा निर्विघ्न संपन्न होती है। शनिवार दोपहर बाद नरसिंह मंदिर प्रांगण ढोल दमाऊ की ताल से गुंजायमान हुआ जिसके बाद तिमुंडिया वीर देवता ने अपने पश्वे (अवतारीपुरुष) पर अवतरित होकर अपना भोग स्वीकार किया। इस दौरान वीर देवता ने लगभग कुंटल चावल गुड़ व पांच घड़े पानी और एक पूरा बकरा कच्चा भक्ष लिया। इस दौरान महिलाओं ने पारंपरिक झुमेलो और चाचड़ी नृत्य किया।इस चमत्कारिक दृश्य के साक्षी हजारों की तादाद में नरसिंह मंदिर प्रांगण में मौजूद श्रद्धालु बने।

कौन है तिमुंडिया वीर देवता

पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार तिमुंडिया वीर देवता जनपद चमोली के लांजी पोखनी के निकट के गांव हियूणा में राक्षस स्वरूप में रहता और नित्य एक ना एक मनुष्य की बलि लेकर गांव में भय फैलाता था। मान्यता है कि एक दिन जोशीमठ क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी मां दुर्गा अपने क्षेत्र भ्रमण पर निकली तो इस राक्षस की भेंट मां दुर्गा से हुई मां दुर्गा से ग्रामीणों ने अपना दुख साझा किया और इस राक्षस का कुछ उपाय करने को कहा उसके बाद मां दुर्गा ने इस राक्षस को राक्षसी योनि से मुक्त कर देवयानी प्रदान की और अपने साथ अपने क्षेत्र जोशीमठ में इस आश्वासन पर ले आई की मां दुर्गा इस राक्षस को प्रतिवर्ष एक बकरे की बलि देगी और उसके बदले में यह राक्षस मां और मां के क्षेत्र की रक्षा करेगा। उस पौराणिक समय से तिमुंडिया को वीर देवता के नाम से पूजा जाने लगा और साल में एक बकरे की बलि आज भी दी जाती है।

 

आज भी दुर्गा जी ही कर पाती है काबू

पौराणिक समय से लेकर आज तक नरसिंह मंदिर में जब जब इस देव मेले का आयोजन होता है तब अवतारी पुरुष पर तिमुंडिया वीर का आवेश आने पर आज भी मात्र मां दुर्गा अवतारी पुरुष पर आए आवेश को काबू करने में सक्षम है। उल्लेखनीय है कि जब तिमुंडिया वीर के अवतारी पुरुष पर वीर का अवतरण होता है उससे कुछ मिनट पहले मां दुर्गा के अवतारी पुरुष पर मां दुर्गा भी अवतरित होती है और इस वीर के बाल पकड़कर इसे काबू करती हैं। पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार वीर की प्रवृत्ति आज भी अत्यंत डरावनी और तेजवान है और इस वीर को काबू करने में मात्र मां दुर्गा ही सक्षम है।

 

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