जौनपुर में दुबड़ी का पर्व पूरे उत्साह व उल्लास के साथ मनाया गया।

मसूरी : मसूरी के निकटवर्ती जौनपुर क्षेत्र में दुबड़ी का पर्व पूरे उत्साह व उल्लास के साथ मनाया गया। इस मौके पर गांवों ने खेतों में उगी नई फसल की पूजा के बाद उसे जमीन में गाढ़ दिया जाता है व शाम होते ही पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ इसे उखाड़ा गया व इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया गया।
मसूरी से सटे जौनपुर विकासखंड के अनेक गांवों में दुबड़ी का पर्व मनाया गया। हालंाकि कुछ गांवों में यह पर्व जन्माष्ठमी के दिन मनाया जाता है, लेकिन अधिकतर गांवों में इसे जन्माष्ठमी के 16 दिन बाद दुर्गाष्ठमी के दिन मनाया जाता है व इसी के साथ त्योहारों का शुभारंभ हो जाता है। दुबडी में इन दिनों खेतों में पैदा हुई नई फसलों के पौधों को जड़ सहित उखाड़ कर लाया जाता है, व इसका गठठर बनाकर गांव के सामूहिक आंगन में गाढ़ दिया जाता है जिसमें मक्का, कोदा, झंगोरा, कौणी आदि फसलें होती है। शाम के समय महिलाएं दुबड़ी की पूजा करती हैं व उसके बाद पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ लोकगीतों गाये जाते है व नृत्य किए जाते हैं। मसूरी से सटे लगड़ासू, मौगी, टकारना, मसरास, सिंदोल, बंगसील, नकोट आदि अन्य गावांे में भी दुबड़ी का पर्व पूरे पारपंरिक रूप से मनाया गया। इस मौके पर विशेष पकवान बनाये जाते है जिसमें पिनौला प्रमुख है वहीं स्वांले, पकोडे, आदि पकवान बनाये जाते हैं, पिनौला, गेहू, झंगोरा व कौणी आदि के आटे को मिक्स कर बनाया जाता है। इस पर्व पर सभी लोग गांव में आ जाते है वहीं गांव की ब्याहताओं को विशेष कर आंमंत्रित किया जाता है। दुबड़ी को रात के समय ढोल दमाउं की थाप के साथ उखाड़ा जात है व इसको प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। यह मान्यता है कि यह सुख समृद्धि का प्रतीक होता है व अच्छी फसलों के लिए मनाया जाता है। दुबड़ी उखाडने के बाद देर रात तक नृत्य किए जाते है, जिसमें सभी ग्रामीण महिलाएं व पुरूष पारंपरिक वेशभूषा में आकर लोक गीतो के साथ नृत्य करती हैं वहीं पांडव नृत्य भी किया जाता है।

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