महाराजा दलीप सिंह के जन्म दिवस पर उनके मसूरी में बिताये दिनों को याद किया।

मसूरी : मसूरी ट्रेडर्स एंड वेलफेयर एसोसिएशन ने महाराजा दलीप सिंह की 186 वां जन्म दिवस मनाया व मसूरी से उनके गहरे संबंधों पर चर्चा की गई व भारत सरकार से मांग की गई कि महाराजा दलीप सिंह के राज्य का कोहिनूर हीरा एवं अन्य खजाना इंग्लैड से भारत मंगवाया जाय।
राधाकृष्ण मंदिर सभागार में महाराजा दलीप सिंह के चित्र पर पुष्प् अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।

इस मौके पर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि अभिवाजित भारत के सबसे बडे व समृद्ध राज्य के लायन ऑफ पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे पुत्र दलीप सिंह थे। उस समय भारत में ब्रिटिश शासन था उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह के राज्य पर कब्जा कर लिया व उनकी राजधानी लाहौर से सारा खजाना ले गये जिसमें कोहिनूर का हीरा भी था। तब अंग्रेजो ने दलीप सिंह को 14 साल की उम्र में अंग्रेज अपने साथ मसूरी ले आये। दलीप सिंह का जन्म 6 सितंबर 1838 में लाहौर में हुआ था व उनकी माता रानी जीना थी। अंग्रेजो ने 1845 व 1847 में प्रथम एंग्लो सिख युद्ध हुआ तब उन्होंने राज्य पर कब्जा कर लिया व दलीप सिंह को 1851 से 53 तक उन्हें मसूरी रखा गया व लाहौर संधि में उनसे हस्ताक्षर करवाये गये व सारी संपत्ति ले ली। उन्हें बार्लोगंज कैसल मसूरी में रखा गया जहां जेपी मेनर होटल है। उन्हें मसूरी में शिक्षा दी गई व 1854 में उन्हें ईसाई धर्म की शिक्षा दी गई। वह मसूरी में रहे व यहंा घूमते थेे सेंटजार्ज के मैदान में क्रिकेट खेलते थे वहीं वह देश विदेश के बडे बडे बुद्धिजीवियों के विचार रखवाते व खुद भी सुनते थे। उन्हेें ब्रिटिश संस्कृति सिखाई जाती थी। जाडों में उन्हें कानपुर फतेह गढ ले जाया जाता था व गर्मियों में मसूरी में रखा जाता था। 1854 में उन्हें इंग्लैड ले गये उनकी माता जो चुनार जेल बनारस में भी उन्हें भी इंग्लैड भेजा गया। मसूरी से उनका गहरा संबंध रहा है उन्हें मसूरी के मेडोक स्क्लू में शिक्षा दी गई। अंग्रेजोे को भय था कि दुबारा सिख युद्ध न कर दे तो तत्काली वायसराय लार्ड डलहौजी ने उन्हें इंग्लैड भेज दिया गया था व वहीं उनकी शिक्षा हुई। ब्रिटिशों ने अरबो खरबों का खजाना पानी के जहाज में भर कर ले गये। पहले अंग्रेजो ने तय किया था कि उन्हें देहरादून में जागीर दे कर रखा जाना था, लेकिन अंग्रेजो में भय था कि कहीं दुबारा से सिख बगावत कर इन्हें अपना राजा न मान लें उन्हें यहां से ले गये व वहीं जीवन पर्यतं रहे। एक बार वह अपनी माता के साथ हिंदुस्तान आये थे। वहीं उनकी बेटी यहां 1960 में हरिद्वार उनकी अस्थियों विसर्जन करने आयी थी। उनकी अनेक वस्तुएं इंग्लैड के अलवर्ट मेमोरियल म्यूजियम व ब्रिटिश म्युजियम में रखी है। ब्रिटिश सरकार ने उनसे धोखे से राज्य छीना था बाद में जब वे युवा हुए व मेजर बन गये थे तब उन्हें सारी हकीकत का पता चला तब उन्होंने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ कोर्ट में केस भी किया लेकिन तत्कालीन महारानी विक्टोरिया ने उन्हें बेटा बना दिया व उन्हें इंग्लैड में बडी संपत्ति दी। भारत सरकार व उत्तराखंड सरकार को इंग्लैड से महाराजा दलीप सिंह की धरोहर वापस मांगनी चाहिए जो भारत की संपत्ति है। ब्रिटिश सरकार ने जो अन्याय इनके साथ किया उस पर ब्रिटिश सरकार ने जिन्हें दलीप सिंह का अभिभावक बनाया जो खुद ब्रिटिशिश थे जोल लॉगिन ने पुस्तक लिखी जिसमें सारी बातें लिखी गई है।

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